Wednesday, February 29, 2012

..!

तब्दीर के आईने में अपनी तस्वीर पर गुमान न करना..
ऐसे में अक्सर तकदीर मार जाती है..!

और हर फूल से न करना दीदार इतना..
काटें तो महज़ चुभा करते है, फूल मार जाते है..!

किसी को तो रास आती है बद्दुआए भी दोस्तों की..
तो किसी को अपनों की दुआए मार जाती है...!
और १ बात; खटाई अंगूर की हो तो शबाब बन जाती है..
पर खटाई अपनों के खूनो में पड़ जाए तो रिश्ते मार जाती है..!
हम आप तो महज १ सिर वाले है..
अपनों की खताए तो १० सिर वालो को भी मार जाती है..!

कुछ पर्दा नशीं की अदाए मार जाती है..
तो शजर से टूटे पत्तो को हर मौसम की हवाए मार जाती है..!
जहा स्याही की बोतले भी खता समझा न पाति..
अश्को की चंद बुँदे मार जाती है..!

तमाशे लाख बरपे सब झेल गए..
पर तमाशबीनो की फुसफुसाती आखें मार जाती है..!
देखता हु खपते आँख वालो को खिदमत्कारी में..
तो आंधो के गलियारों की चमक मार जाती है..!

और आदमी की उम्र लिहाज़ा हाथी की तरह है..
अक्सर हाथी तो निकल जाता है आखिर की पूछ की फजीहत मार जाती है..!

मनघडंत हो बातें तो अविश्वास ही लाती है...
और 'मनमोहन' हो कोई तो 'देश' मार जाती है....!!

-प्रियांशु वैद्य .

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