Thursday, October 20, 2011



किस्सा(kissa) ये उस दगा-ऐ-रात का है ...
महफ़िल अपनों से सजी थी अफ़सोस तो इसी बात का है ...


गले की पीयास को जान कर भी
पानी वो आखो को दे गए अफ़सोस इस बात का है ...


चीर कर छाती ले जाते वो दील मेरा तो घ्हम न होता....


चीर कर छाती ले जाते वो दील मेरा तो घ्हम न होता....
वो फूसला कर ले गए,अफ़सोस इस बात का है ....


यु देख कर फकीरी कहा गीरते शीशे कारो के है...


यु देख कर फकीरी कहा गीरते शीशे कारो के है...
पर कार अपनों से शूमार थी , अफ़सोस तो इस बात का है ...


यू तो अपनी मौत से भी कर दीया खुश सभी को मैंने ...


यू तो अपनी मौत से भी कर दीया खुश सभी को मैंने ...
पर घ्हाव पीठ पर था , अफ़सोस इस बात का है ...


यु जले तो एक अरसा हुआ था ...


यु जले तो एक अरसा हुआ था ...
पर अपनी सर्दी की खातीर मेरी राख कुरे्दी, अफ़सोस तो इस बात का है ..


दगा-ऐ-महफ़िल अपनों से सजी थी
सच मानिये अफ़सोस तो इसी बात का है ...!!!


प्रियांशु वैद्य.