Wednesday, December 7, 2011

"....!"

आकाश से परदा ज्यो तुम हठाते , तो तुम जान लेते 
                  की मैं क्या चाहता हु ...
कुछ देर मेरी सरगम ज्यो  तुम गुनगुनाते तो जान लेते की
                  की मैं क्या सोचता हु ...

जो आसुओ  की नमी को तुम भाप पाते तो
आखो से बिछड़ने का विलाप जान जाते 

जो मेरी हसरत को अपना बनाते 
तो क्या मालुम, आकाश से तारे तुम नही तोड़ लाते !


जो समंदर की लहरों के किनारे न होते तो तुम जान लेते
                  की मैं कहा तक सोचता हु
जो दुनिया के खूटे से यु बंधे न होते तो कुछ दूर तुम भी मेरे साथ चले आते 
और देखते 
                 की मैं क्या सोचता हु ....

जो चंद्रमा पर जाने की चाहत से, अमावस्या सागर की लहरों पर बिताते..
(ज्वारभाटे पर चंद्रमा लहरों को अपनी और ख्हिचता है तो...)
जो चंद्रमा पर जाने की चाहत से, अमावस्या सागर की लहरों पर बिताते
तो तुम जरुर मेरी आरजू को अपना बनाते ..

जो कानो के परदों से मेल तुम झटकते 
तो गुंगो की महफ़िल का गीत सून पाते...

जो बदल के खूटे पर झुला लगते तो तुम जान लेते 
                की मैं क्या सोचता हु..

जो भूल अगर पाते इस मतलब के गणित को 
तो बेवजह ही अपना दिल मेरे पास छोड़ जाते 

जो स्याही से मेरी अपनी आखें छुपकते 
तो दुनिया के नशे से तुम जग पाते 

जो सितारों क पार आखें देख पाती तो जान लेते
                की मैं क्या चाहता हु
कुछ देर मेरी सरगम जो तुम गुनगुनाते तो जान लेते
                की मैं क्या सोचता हु  ...!

-प्रियांशु वैद्य 

Thursday, October 20, 2011



किस्सा(kissa) ये उस दगा-ऐ-रात का है ...
महफ़िल अपनों से सजी थी अफ़सोस तो इसी बात का है ...


गले की पीयास को जान कर भी
पानी वो आखो को दे गए अफ़सोस इस बात का है ...


चीर कर छाती ले जाते वो दील मेरा तो घ्हम न होता....


चीर कर छाती ले जाते वो दील मेरा तो घ्हम न होता....
वो फूसला कर ले गए,अफ़सोस इस बात का है ....


यु देख कर फकीरी कहा गीरते शीशे कारो के है...


यु देख कर फकीरी कहा गीरते शीशे कारो के है...
पर कार अपनों से शूमार थी , अफ़सोस तो इस बात का है ...


यू तो अपनी मौत से भी कर दीया खुश सभी को मैंने ...


यू तो अपनी मौत से भी कर दीया खुश सभी को मैंने ...
पर घ्हाव पीठ पर था , अफ़सोस इस बात का है ...


यु जले तो एक अरसा हुआ था ...


यु जले तो एक अरसा हुआ था ...
पर अपनी सर्दी की खातीर मेरी राख कुरे्दी, अफ़सोस तो इस बात का है ..


दगा-ऐ-महफ़िल अपनों से सजी थी
सच मानिये अफ़सोस तो इसी बात का है ...!!!


प्रियांशु वैद्य.

Tuesday, October 18, 2011

जव़ा-दस्ताने...!!


"भैय्या आगे से spike, मूछ साफ़ और कलम लम्बी रखना..!"

बात उस परिवर्तन की है जीसे रमाकांत की हफ्ते दर हफ्ते बदलती हैएर स्टाइल बरबस ही बया क्र जाती थी | रमाकांत का शरीर अब पकने लगा था, मुछो की रेत जैसे फूटने लगी थी | हालाकी वो बात और थी की (माँ रजनी देवी के स्तोत्र से) रमाकांत चाय बनाने की कला में भले ही पारंगत न हुआ हो पर अब वो इस साल देश की सर्कार चुन ने लायक तो हो ही चला था (१८ वर्ष+) | 
आज फिर सुबह कोलाहल से भरी थी, कॉलेज में १ घंटा शेष था और वीर रस से ओत-प्रोत राज्निदेवी जी अपने प्रयासों के चरम पर , पर लाडले है की सो क्र उठने को तैयार नहीं | अब भला रमाकांत की व्यथा राज्निदेवी कैसे समझती की देर से सो क उठने में और उठ क्र फिर सो जाने में जो आनंद की अनुभूति है वो तो बड़े बड़े साधू-मुनि को भी नसीब न हुई | रमाकांत अब 'रमाकांत' से रैम हो गया था | जहा दोस्तों क जकीरे में, लप्पसी में समय के ठीकाने न थ, वही पढाई के लिए समय निकलना भी एक कला ही रह गई थी |
सुंदर सुंदर युवतियो को देख क्र रमाकांत का दील अक्सर धड़कने लगा था | सौन्दर्य प्रेमी हो चले रमाकांत नैन सुख प्राप्ति का अनुभव करने लगे थर | और इस लेख के दौरान आपको पता चलता उसके पहले रमाकांत हमारी कहानी के इमरान हाश्मी हो चले थे | जनाब ने फ़रमाया भी तो क्या ! इश्क !! विश्वास तो मानीये खबर एक दम पुख्ता है जनाब को अब चाँद भी बड़ा दिख रहा थ और शाखें गुनगुनाती, ठीक वैसे 'जैसा फिल्मो में होता है!' | जासूसी करने पर अब जान पाएँगे की इन दीनो रैम मिया घंटो उलटी किताब ही पद लिया करते है | उंगलिया किताबो में कम और मोबाइल में अधिक रेंगने लगी थी | इस सो काल्लेद प्रेम-नामे से कोई ख्हुश हो न हो एयरटेल कंपनी वालो की ख़ुशी एस.एम.एस के बढ़ते त्रफ्फिक से जरुर नदारद थी | इस विडम्बना पर मेरी रैम ब्रो को यही सलाह रही की :



"जिंदगी के फैसले नहीं करते सिक्के उछल कर...
इश्क का मामला है भाई, जरा देख भाल क्र...!!

ये मोबाइल के दौर के आशिक क्या जाने... (२)
की ख्हतो में रख देते थे कलेजा अपना निकाल कर...!! "
 

कलेंडर छपने वालो से भी आधुनिक आशिकों का बुरा हाल रहा है, फ्रेंडशिप ड, वलेंतिने डे, बिर्थ डे... और न जाने क्या क्या डे, और आलम कुछ यु की यहा तोहफे तो तोहफे फूलो की खुसबू के भी ब्रांड देखे जाते है |
और कुछ ऐसी ही मट्टी पलीती में रैम महोदय भी ध्हस्ते ही चले जा रहे थे | घर पर शीला के जवान होने का किस्सा तो आम था पर अफ़सोस की इस बात का अंदाज़ा नही की उनका रामू इस कदर जवा हो चला था की तोहफों के वज़न के मारे वो सत्ताख्होरी पे आमदा हो गया | गणितीय सूत्र लिखने वाली कलम अब उधारदाताओ के हिसाब में जुटी थी | चौतरफा उधार जुगाड़ की दीवार उठती ही चली जा रही थी |

अब कोई कांच का टुकड़ा टुटा होता तो १ बार तोड़ने वाले को जखम तो देता ही, पर अफ़सोस की उस रोज़ टुटा तो रमाकांत का दील था | एस.एम्.एस प्रेम का नेटवर्क पूरी तरह से ठप हो चूका था | बस वही एक दिन था जब रमाकांत और शराब दोनों की राशिफल में तन्हाई लिखी थी क्युकी फिर उस दिन के बाद बोतल ने कभी अपने आप को तन्हा न पाया | और फिर एक दिन रामकांत शयद इस विस्वास क साथ झूल गया की अगली बार वो अपनी हथेली में एक अतिरिक्त रेखा लेकर पैदा होगा | अतः शायर की बात बड़ी प्रासंगिक जान पडती है की :

" इश्क जिसे कहते है
गज़ब वो खिलौना है...
मिल जाए तो मिट्टी
और खो जाए तो सोना है....!! "

अफ़सोस की आपका लेखक लिहाज़न उम्र इस काबिल नही की इस वाकीये से कुछ समेट कर लिख पाता और अपनी बेवफाई पर क्षमा मांगता हु की आपको इस विस्मयकारी पर्सना पर अकेला ही छोड़े जा रहा हु की क्या मात्र रमाकांत का विवेक ही दोषी है या फिर आधुनिक चलचित्र(चलन) का पैमाना भी..??

प्रियांशु वैद्य .

Wednesday, October 5, 2011

Vishwaas-Naama...



"har raat paemane aag se chahe kyu na gujar jae..
ye wishwaas h mere dost meri jhulfe nhi jo barbas yuhi bikhar jae.."




( kal tk jis taar p main chhadi sukha raha tha tu keh rha h ki aaj wo taar hi gumshuda h..
to sunta ja....)
ae dost


"sahas kaha hai mujhme ki bhar saku vishwaas ka koi harzaana...
par todna ho jo ye gathbandhan to 1 dafe .....bus 1dafe meri chhadi ko ittlah jarur kr jana.."




1 aur baat jo gaur mangti h...


"chaale chali hongi laakh tumne pr ye khne wala b koi kayar hi to h...
kya bura manna ae dost..jb samne wala koi 'gumnaam shayar' hi to h....!"


Priyanshu..

Tuesday, October 4, 2011

Tere chehre ki khoobsuurti ko 1 chhand likh raha hu
 
Teri bheege hui jhulfo p 1 diwaana-aam likh raha hu

Tere hotho ki piyaas ko 1 sharab likh raha hu

Tere hasne k andaaz ko 1 shabab likh raha hu

Tere ashko ki barsaat ko 1 dariya likh raha hu

Teri naazuk si aadao ko 1 ghhulab likh rha hu

Teri dilkash awaaz ko nagma-e-khaas likh raha hu

Teri aakho ki kashish ko 1 jaam likh raha hu...!