आकाश से परदा ज्यो तुम हठाते , तो तुम जान लेते
की मैं क्या चाहता हु ...
कुछ देर मेरी सरगम ज्यो तुम गुनगुनाते तो जान लेते की
की मैं क्या सोचता हु ...
जो आसुओ की नमी को तुम भाप पाते तो
आखो से बिछड़ने का विलाप जान जाते
जो मेरी हसरत को अपना बनाते
तो क्या मालुम, आकाश से तारे तुम नही तोड़ लाते !
जो समंदर की लहरों के किनारे न होते तो तुम जान लेते
की मैं कहा तक सोचता हु
जो दुनिया के खूटे से यु बंधे न होते तो कुछ दूर तुम भी मेरे साथ चले आते
और देखते
की मैं क्या सोचता हु ....
जो चंद्रमा पर जाने की चाहत से, अमावस्या सागर की लहरों पर बिताते..
(ज्वारभाटे पर चंद्रमा लहरों को अपनी और ख्हिचता है तो...)
जो चंद्रमा पर जाने की चाहत से, अमावस्या सागर की लहरों पर बिताते
तो तुम जरुर मेरी आरजू को अपना बनाते ..
जो कानो के परदों से मेल तुम झटकते
तो गुंगो की महफ़िल का गीत सून पाते...
जो बदल के खूटे पर झुला लगते तो तुम जान लेते
की मैं क्या सोचता हु..
जो भूल अगर पाते इस मतलब के गणित को
तो बेवजह ही अपना दिल मेरे पास छोड़ जाते
जो स्याही से मेरी अपनी आखें छुपकते
तो दुनिया के नशे से तुम जग पाते
जो सितारों क पार आखें देख पाती तो जान लेते
की मैं क्या चाहता हु
कुछ देर मेरी सरगम जो तुम गुनगुनाते तो जान लेते
की मैं क्या सोचता हु ...!
-प्रियांशु वैद्य